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लय / हेमन्त कुकरेती

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जो सबसे ज़्यादा आसान दिख रहा है
बेहद मुश्किल में है
जिसे कहते हैं जीना
यह साँसों की आवाजाही है, बस

समय ऐसा है कि सबूत के लिए
मिटा दिया जाता है सच
सच के लिए कहा जाता है
बोल इसलिए रहे हैं कि
हमें झूठ बोलने की सुविधा नहीं है

लोग हँसते नहीं हैं कि समझा जाएगा
उसे उनका रोना
छुपाते हैं आँसू कि कुछ लोग पूछेंगे
वे सुखी क्यों हैं?

चीख़ों से पता चलता है कि कहीं
हमारे आसपास कुछ हो रहा है ग़लत
घुटती हुई-सी आहें बताती हैं कि
उसका विरोध किया जा रहा है

उजले चेहरे अपने समय की कालिख से
धूमिल पड़ रहे हैं
बच्चों की भूख के लिए पानी भी नहीं बचा
फसलें गोदामों में नहीं
बरबाद हो रही हैं तहख़ानों में
हड्डियों को जंग नहीं, चाट रहा है नशा
बेमतलब किया जा रहा है वज़नी शब्दों में रखकर
इसी समय में

उन्हीं पुराने रास्तों पर दौड़ते हुए हम घिस गये हैं
इतनी हो गयी है टूट-फूट कि
बेकार है मरम्मत करना
फिर भी हम आते हैं और जाते हैं

इस वक़्तकटी को हम कई सुन्दर नामों से
पुकारते हैं
तब अपनी ही आवाज़
किसी अन्धे विवर में गुम होती लगती है

जीवन की तुकों को बटोरते हुए लगता है
गँूगा हो जाऊँगा

एक आदमी लगभग डाँटते हुए पूछता है कि
लय में
क्यों नहीं कहते अपनी बात?
उसे बताता हूँ कि जिसे कहते हैं लय
वह साँसों से बड़ी है

वही नहीं है हमारे पास