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मैं / हेमन्त कुकरेती

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मैं पृथ्वी का अटूट धैर्य हूँ
और आकाश की अतल चुप्पी
पानी से भी ज़्यादा पतले मेरे दुख
काटते रहते हैं मुझे
आग की तरह लपकता हूँ सुखों की तरफ़
फिर भी हवा जैसे व्यापक हैं मेरे डर

हो सकता है कि मैं एक पर्दा होऊँ
खिड़कियों पर हिलता छुपाता छिपकलियों को
एक कोने पर टँगा हुआ
लकड़ी का मन्दिर भी हो सकता हूँ मैं
ज़मीन से उठा
ताँबे की मूर्तियों से घिरा हुआ सन्न

शायद मुझे पसीने से लथपथ कमीज़ माना जाता हो
दरवाजे़ पर लटकी हुई
पत्थर की दीवारें हैं जिसकी
ऐसे एक अकेले घर के शोर में छोड़ा हुआ पेट-भर खाना
या पटका हुआ जूता भी लग सकता हूँ मैं
धूल में सना हुआ बेदम बेरंग
धूप में पिघलने को छत पर फेंकी
प्लास्टिक की कुर्सी भी कह सकते हैं मुझे
मुझसे थरमस का काम भी लिया जा सकता है
मेरा काँच टूट गया है
और बच्चे मुझमें झूठमूठ का दूध भरकर खेलते हैं घर-घर

कई बार केवल क्रोमोज़ोम समझा जाता है मुझे
दो के मिलने से तीसरा बना हुआ
चौथे में बसने से पाँचवाँ छठे में रचा हुआ
मैं कैमिकल हूँ या धर्म या भूख
जिसने शाश्वत होने की साँसत में डाल रखा है
मैं काठ की मेज़ हूँ या उससे गिरकर ठण्डे फ़र्श पर छटपटाती टॉर्च
अँधेरे को उकसाती अपनी रोशनी में टिमटिमाती
मोमबत्ती की लौ
या जाने कहाँ से आती हवा से हिलता कैलेण्डर
कष्ट के दिन धरे हुए हैं जिसकी छाती पर
बिस्तर पर सोई किताब जिसमें उफ़न रहे हैं सागर
या बहुत पुराने अचानक मिल गये ख़त में
उभरती कोई परछाई
जिसे अब भी पहचाना जा सकता है

मैं खुली जेल हूँ या खुलने के इन्तज़ार में बन्द पड़ा मकान
कहीं नहीं जाता रास्ता हूँ या बाढ़ से घिरा गाँव
जहाँ बूढ़े और स्त्रियाँ बच्चों की तरह रो रहे हैं
काँसे में ढला तानाशाह का सिर
अपने सन्नाटे में स्तब्ध करता हुआ
जेब में पड़ा चाबियों का गुच्छा
जिनसे कोई ताला नहीं खुलता
खिड़की के पल्लों में दब गयी उँगली
जिसका नाखू़न उखड़ गया है और जिसके लिए रात
अनन्त हो गयी है

जीने की ललक से रँगी बूँद से लाल हुई
चे ग्वेरा की आखिरी कूद में उड़ी हवा हूँ
या भाप बनकर करुण आँखों में मुस्करता
बुद्ध के चरणों पर गिरा आँसू

चटाई का भीगा कोना
जो जून में सूखेगा जब प्यार किया जाएगा
और ठण्डक से पहचाना जाएगा किसी का आना
बहुत पहले खो गया और आज दिखा सिलाई उधड़ा नन्हा-सा स्वेटर
तलवारों के बीच जश्न मनाते चेहरे:
बारूद से चीथड़ा हो गयी सिसकी
गैस-चैम्बर में घुटती हुई चीखें: तेल में लिथड़ा हुआ कपोत
चींटियाँ जिसे उठाकर ले जा रही हैं क्या मैं वह दाना हूँ
या दो उचक्कों की जीत के लिए लड़ रहे
उन सैनिकों की स्मृति हूँ जो कभी नहीं लौटेंगे

औरत की पीठ पर छपी चमड़े की बेल्ट
बच्चे के गाल पर खुदी उँगलियाँ
अबूझ लिपि में लिखी दवा की पर्ची
नौकरी पाने की उम्मीद
मन जैसी किसी जगह में बची हुई
ऐसे कई दूसरे उपयोग भी सोचे गये हैं मेरे

इतनी सारी चीजे़ें जिस आदमी को बरतती हैं
इतनी सारी चीजे़! वही हूँ क्या मैं
क्या पता चीजे़ं मुझे देखती हों
एक बेकार चीज़ की तरह फालतू
मुस्कराती हो मेरे कण्ठ में गूँजती आवाज़ सुनकर कि
मैं हूँ क्या!

क्या केवल एक छाता
जिससे अक्तूबर में भादों टपक रहा है
शब्दस्फीत एक पंक्ति की कविता
या बचपन का खिलौना
जिसमें बचा है अब भी मुझसे खेलने का चाव
मैं क्या उम्र हूँ जिसे यूँ ही गँवाया जा रहा है
या जाया होता वक़्त
जो घड़ी के बाहर तक फैलकर दबोच रहा है

मैं एक प्रश्न हूँ कि मैं क्या दूँ?
मैं एक उत्तर हूँ कि मैं हूँ!