क्या क़हर<ref>दैवी प्रकोप</ref> है यारो जिसे आजाये बुढ़ापा।
और ऐश जवानी के तई खाये बुढ़ापा॥
इश्रत<ref>खुशी, आनन्द</ref> को मिला ख़ाक में ग़म लाये बुढ़ापा।
हर काम को हर बात को तरसाये बुढ़ापा॥
सब चीज़ को होता है बुरा हाय! बुढ़ापा।
आशिक़ को तो अल्लाह! न दिखलाए बुढ़ापा॥1॥
जो लोग ख़ुशामद से बिठाते थे घड़ी पहर।
छाती से लिपटते थे मुहब्बत की जता<ref>जाहिर करके</ref> लहर॥
अब आके बुढ़ापे ने किया, हाय ये कुछ क़हर।
अब जिनके कने<ref>पास</ref> जाते हैं लगते हैं उन्हें ज़हर॥
सब चीज़ को होता है बुरा हाय! बुढ़ापा।
आशिक़ को तो अल्लाह! न दिखलाए बुढ़ापा॥2॥
आगे तो परीज़ाद<ref>अप्सरा-पुत्र, माशूक</ref> यह रखते थे हमें घेर।
आते थे चले आप जो लगती थी ज़रा देर॥
सो आके बुढ़ापे ने किया हाय यह अन्धेर।
जो दौड़ के मिलते थे वह अब लेते हैं मुंह फेर॥
सब चीज़ को होता है बुरा हाय! बुढ़ापा।
आशिक़ को तो अल्लाह! न दिखलाए बुढ़ापा॥3॥
थे जब तलक अय्याम<ref>दिन</ref> जवानी के हरे रूख।
महबूब<ref>प्रियपात्र</ref> वह मिलते थे न हो देख जिन्हें भूख॥
बैठें थे परिंद आन के जब तक था हरा रूख॥
अब क्या है जो पतझड़ हुआ, और जड़ हो गई सूख॥
सब चीज़ को होता है बुरा हाय! बुढ़ापा।
आशिक़ को तो अल्लाह! न दिखलाए बुढ़ापा॥4॥
आगे थे जहां गुलबदन<ref>फूल जैसे कोमल शरीर वाले</ref> और यूसुफे़ सानी<ref>हज़रत यूसुफ जैसे सुन्दर, अत्यन्त सुन्दर</ref>।
देते थे हमें प्यार से छल्लों की निशानी॥
मर जायें तो अब मुंह में न डाले कोई पानी।
किस दुःख में हमें छोड़ गई ‘हाय जवानी’॥
सब चीज़ को होता है बुरा हाय! बुढ़ापा।
आशिक़ को तो अल्लाह! न दिखलाए बुढ़ापा॥5॥
याद आते हैं हमको जो जवानी के वो हंगाम।
और जाम दिल आराम, मजे़ ऐश और आराम॥
उन सब में जो देखो तो नहीं एक का अब नाम।
क्या हम पै सितम कर गई ये गर्दिशे अय्याम<ref>दिनों के फेर</ref>॥
सब चीज़ को होता है बुरा हाय! बुढ़ापा।
आशिक़ को तो अल्लाह! न दिखलाए बुढ़ापा॥6॥
मज़लिस में जवानों की तो साग़र<ref>शराब के प्याले</ref> हैं छलकते।
चुहलें हैं बहारें हैं परीरू<ref>सुन्दरियां</ref> हैं झमकते॥
हम उनके तयीं दूर से हैं रश्क<ref>किसी की विशेषता से ईर्ष्या न करके स्वयं वैसा बनने का भाव</ref> से तकते।
वह ऐशो तरब<ref>रास-रंग</ref> करते हैं हम सर हैं पटकते॥
सब चीज़ को होता है बुरा हाय! बुढ़ापा।
आशिक़ को तो अल्लाह! न दिखलाए बुढ़ापा॥7॥
अब पांव पड़ें उनके तो हरगिज़ न बुलावें।
जा बैठें तो एकदम में ख़फ़ा होके उठावें॥
इतना तो कहां अब, जो कोई जाम<ref>शराब का प्याला</ref> पिलावें।
गर जान निकलती हो तो पानी न चुआवें॥
सब चीज़ को होता है बुरा हाय! बुढ़ापा।
आशिक़ को तो अल्लाह! न दिखलाए बुढ़ापा॥8॥
जब ऐश के मेहमान थे, अब राम के हुए जैफ़<ref>मेहमान</ref>।
अब खूने जिगर खाते हैं, जब पीते थे सौ कैफ़<ref>नशा</ref>॥
जब ऐंठ के चलते थे सिपर<ref>ढाल</ref> बांध उठा सैफ़<ref>तलवार</ref>।
अब टेक के लाठी के तई चलते हैं सद हैफ़<ref>सैकड़ों अफसोस</ref>।
सब चीज़ को होता है बुरा हाय! बुढ़ापा।
आशिक़ को तो अल्लाह! न दिखलाए बुढ़ापा॥9॥
थे हम भी जवानी में बहुत इश्क़ के पूरे।
वह कौन से गुलरू<ref>फूल जैसे सुन्दर मुख वाले</ref> थे जो हमने नहीं घूरे<ref>ताकना, टकटकी लगाकर देखना</ref>॥
अब आके बुढ़ापे ने किये ऐसे अधूरे।
पर झड़ गए, दुम उड़ गई, फिरते हैं लडूरे॥
सब चीज़ को होता है बुरा हाय! बुढ़ापा।
आशिक़ को तो अल्लाह! न दिखलाए बुढ़ापा॥10॥
क्या यारो, उलट हाय गया हमसे ज़माना।
जो शोख़<ref>चंचल</ref> कि थे अपनी निगाहों के निशाना॥
छेड़े है कोई डाल के दादा का बहाना।
हंस कर कोई कहता है ”कहां जाते हो नाना“॥
सब चीज़ को होता है बुरा हाय! बुढ़ापा।
आशिक़ को तो अल्लाह! न दिखलाए बुढ़ापा॥11॥
पूछें जिसे कहता है वह क्या पूछे है बुड्ढे?
आवें तो यह गुल हो कि कहां आवे है बुड्ढे?
बैठें तो यह हो धूम, कहां बैठे हैं बुड्ढे?
देखें जिसे कहता है, वह क्या देखे हैं बुड्ढे?
सब चीज़ को होता है बुरा हाय! बुढ़ापा।
आशिक़ को तो अल्लाह! न दिखलाए बुढ़ापा॥12॥
क्या यारो कहें गोकि<ref>यद्यपि</ref> बुढ़ापा है हमारा।
पर बूढ़े कहाने का नहीं तो भी सहारा॥
जब बूढ़ा हमें कहके जहां<ref>संसार</ref> हाय! पुकारा।
काफ़िर<ref>ईश्वर की दी हुई नेंमतों पर कृतज्ञता प्रकट न करने वाला, दुष्ट, बुरा</ref> ने कलेजे में गोया तीर सा मारा॥
सब चीज़ को होता है बुरा हाय! बुढ़ापा।
आशिक़ को तो अल्लाह! न दिखलाए बुढ़ापा॥13॥
खू़बां<ref>सुन्दरियों, माशूकों</ref> में अगर जावें तो होती है यह फकड़ी<ref>अनादर-पूर्ण मज़ाक</ref>।
खीचें है कोई हाथ कोई पकड़े है लकड़ी॥
मूंछें कहीं बत्ती के लिए जाती हैं पकड़ी।
दाढ़ी को पकड़ खींच कोई झाड़े है मकड़ी॥
सब चीज़ को होता है बुरा हाय! बुढ़ापा।
आशिक़ को तो अल्लाह! न दिखलाए बुढ़ापा॥14॥
कहता है कोई छीन लो इस बुड्ढे की लाठी।
कहता है कोई शोख<ref>चंचल, माशूक</ref> कि हां खींच लो डाढ़ी॥
इतनी किसी काफ़िर को समझ अब नहीं आती।
क्या बूढ़े जो होते हैं तो क्या उनके नहीं जी॥
सब चीज़ को होता है बुरा हाय! बुढ़ापा।
आशिक़ को तो अल्लाह! न दिखलाए बुढ़ापा॥15॥
एक वक़्त वह था हम भी मजे़ करते थे गिन-गिन।
महबूब<ref>प्रिय पात्र</ref> परीज़ाद<ref>अप्सरा पुत्र/पुत्री</ref> न रहते थे मिले बिन॥
एक वक़्त यह है हाय जो सब करते हैं अब घिन<ref>घृणा</ref>।
या एक वह अय्याम<ref>दिन</ref> थे या एक हैं यह दिन॥
सब चीज़ को होता है बुरा हाय! बुढ़ापा।
आशिक़ को तो अल्लाह! न दिखलाए बुढ़ापा॥16॥
बूढ़ों में अगर जावें तो लगता नहीं वां<ref>वहां</ref> दिल।
वां क्यों कि लगे, दिल तो है महबूबो<ref>प्रिय पात्र, सुन्दरी</ref> का मायल<ref>आसक्त</ref>॥
महबूबों में जावें हैं तो वह सब छेड़े हैं मिल-मिल।
क्या सख़्त मुसीबत है पड़ी आन के मुश्किल॥
सब चीज़ को होता है बुरा हाय! बुढ़ापा।
आशिक़ को तो अल्लाह! न दिखलाए बुढ़ापा॥17॥
पनघट को हमारी अगर असवारी गई है।
तो वां भी लगी साथ यही ख़्वारी गई है॥
सुनते हैं कि कहती हुई पनिहारी गई है।
”लो देखो बुढ़ापे में यह मत मारी गई है॥“
सब चीज़ को होता है बुरा हाय! बुढ़ापा।
आशिक़ को तो अल्लाह! न दिखलाए बुढ़ापा॥18॥
पगड़ी हो अगर लाल गुलाबी तो यह आफ़त।
कहता है हर एक देख के क्या खू़ब है रंगत॥
ठट्ठे से कोई कहता है कर शक्ल पै रहमत।
लाहौल वला<ref>घृणासूचक वाक्य</ref> देखिए, बूढ़े की हिमाक़त<ref>मूर्खता</ref>॥
सब चीज़ को होता है बुरा हाय! बुढ़ापा।
आशिक़ को तो अल्लाह! न दिखलाए बुढ़ापा॥19॥
गर ब्याह में जावें तो यह ज़िल्लत<ref>ख्वारी</ref> है उठाना
छूटते ही बने बाप निकाही<ref>निकाह वाली</ref> का निशाना॥
रिंदों<ref>शराबी, रसिया</ref> में अगर जावें तो मुश्किल है फिर आना।
अफ़सोस किसी जा<ref>जगह</ref> नहीं बूढ़े का ठिकाना॥
सब चीज़ को होता है बुरा हाय! बुढ़ापा।
आशिक़ को तो अल्लाह! न दिखलाए बुढ़ापा॥20॥
है झांवली<ref>आंख और भौं का इशारा</ref> ताली<ref>दोनों हाथों का बजाना</ref> का जनानों<ref>हिजड़ों में</ref> में जो चर्चा।
गर उनमें कभी जावें तो है यह सितम आता॥
दाढ़ी की जगत बोले कोई आंख को मटका।
ठट्ठे से कोई कहता है आ! आ! मेरे दादा॥
सब चीज़ को होता है बुरा हाय! बुढ़ापा।
आशिक़ को तो अल्लाह! न दिखलाए बुढ़ापा॥21॥
दरिया के तमाशे को अगर जावें तो यारो।
कहता है हर एक देख के ”जाते हो कहां को?“॥
और हँस के शरारत से कोई पूछे है बदखो<ref>बुरे और कड़ुवे स्वभाववाला</ref>।
”क्यों खैर है, क्या खि़ज्र<ref>भूले भटकों को राह बताने वाले, अमर पैगम्बर</ref> से मिलने को चले हो?“॥
सब चीज़ को होता है बुरा हाय! बुढ़ापा।
आशिक़ को तो अल्लाह! न दिखलाए बुढ़ापा॥22॥
गर आज को होते वह जवानी के जमाने।
कु़दरत थी जो यूं छेड़ते भडु़ए व जनाने।
मुश्किल अभी पड़ जाती उन्हें पीछे छुड़ाने।
एक दम में अभी लगते बोही हाय! मचाने॥
सब चीज़ को होता है बुरा हाय! बुढ़ापा।
आशिक़ को तो अल्लाह! न दिखलाए बुढ़ापा॥23॥
गर नाच में जावें तो यह हसरत है सताती।
जो नाचे है काफ़िर वह नहीं ध्यान में लाती॥
औरों की तरफ़ जावे तो आंखें है लड़ाती।
पर हमको तो काफ़िर वह अंगूठा है दिखाती॥
सब चीज़ को होता है बुरा हाय! बुढ़ापा।
आशिक़ को तो अल्लाह! न दिखलाए बुढ़ापा॥24॥
गर नायिका उनमें कोई बूढ़ी है कहाती।
अलबत्ता बुढ़ापे पै वह टुक रम है खाती॥
फ़ीकी सी पुरानी सी, लगावट है जताती।
पर क़हर<ref>देवी प्रकोप</ref> है, वह हमको ज़रा खुश नहीं आती।
सब चीज़ को होता है बुरा हाय! बुढ़ापा।
आशिक़ को तो अल्लाह! न दिखलाए बुढ़ापा॥25॥
चकले<ref>व्यभिचारिणी स्त्रियों या रंडियों का अड्डा</ref> के जो अन्दर की वह कहलाती हैं कस्बी<ref>पेशेवर बाज़ारी औरत</ref>।
गर उनमें कभी जावें तो होती है खराबी॥
मुंह देखते ही कहती हैं सब ”आओ बड़े जी“॥
”क्या आए हो यां करने को पीरी व मुरीदी<ref>उस्तादी शागिर्दी</ref>॥
सब चीज़ को होता है बुरा हाय! बुढ़ापा।
आशिक़ को तो अल्लाह! न दिखलाए बुढ़ापा॥26॥
गर जावें तवायफ<ref>वेश्या</ref> में तो लगती हैं सुनाने।
क्या आये हो हज़रत हमें कु़रआन पढ़ाने॥
हंस-हंस कोई पूछे है नमाज़ों के दुगाने<ref>शुकराने की नमाज़ की दो रकअतें</ref>।
ठट्ठे से कोई फेंके है तस्बीह<ref>माला</ref> के दाने॥
सब चीज़ को होता है बुरा हाय! बुढ़ापा।
आशिक़ को तो अल्लाह! न दिखलाए बुढ़ापा॥27॥
गो<ref>यद्यपि</ref> झुक के कमर पांव से सर आन लगा है।
पर दिल में तो खूंबा<ref>सुन्दरियों का</ref> का वही ध्यान लगा है॥
कहते हैं, जिसे हमको यह अरमान लगा है।
कहता है वह, क्या बूढ़े को शैतान लगा है॥
सब चीज़ को होता है बुरा हाय! बुढ़ापा।
आशिक़ को तो अल्लाह! न दिखलाए बुढ़ापा॥28॥
नक़लें कोई इन पोपले होठों की बनावे।
चलकर कोई कुबड़े की तरह क़द को झुकावे॥
दाढ़ी के कने<ref>पास</ref> उंगली को ला ला के नचावे।
यह ख़्वारी तो अल्लाह! किसी को न दिखावे॥
सब चीज़ को होता है बुरा हाय! बुढ़ापा।
आशिक़ को तो अल्लाह! न दिखलाए बुढ़ापा॥29॥
थे जैसे जवानी में किये धूम धड़क्के।
वैसे ही बुढ़ापे में छुटे आन के छक्के॥
सब उड़ गए काफ़िर वह नज़ारे वह झमक्के।
अब ऐश जवानों को है, और बूढ़ों को धक्के॥
सब चीज़ को होता है बुरा हाय! बुढ़ापा।
आशिक़ को तो अल्लाह! न दिखलाए बुढ़ापा॥30॥
गर हिर्स<ref>लोभ, लालच, इच्छा</ref> से दाढ़ी को खि़ज़ाब अपनी लगावें।
झुर्री जो पड़ी मुंह पे उन्हें कैसे मिटावें॥
गो मक्र<ref>धोखा, चालाकी</ref> से हंसने के तई दांत बंधाबे<ref>बनावटी दांत लगावालें</ref>।
गर्दन तो पड़ी हिलती है क्या ख़ाक छिपावें॥
सब चीज़ को होता है बुरा हाय! बुढ़ापा।
आशिक़ को तो अल्लाह! न दिखलाए बुढ़ापा॥31॥
आंखों से ये दीदार<ref>दर्शन</ref> की लज़्ज़त<ref>आनन्द प्राप्त करने की आदत</ref> नहीं छुटती।
और दिल से भी महबूब की उल्फ़त नहीं छुटती॥
सब छूट गया पर दीद<ref>दीदार, दर्शन</ref> की यह लत नहीं छुटती।
बूढ़े हुए पर हुस्न की चाहत नहीं छुटती॥
सब चीज़ को होता है बुरा हाय! बुढ़ापा।
आशिक़ को तो अल्लाह! न दिखलाए बुढ़ापा॥32॥
सुनते हो जवानो का यह सखु़न कहते हैं तुमसे।
करने हों जो कर लो वह मजे़ ऐशो तरब<ref>आनन्द, आह्लाद, खुशी</ref> के॥
जावेगी जवानी तो फिर अफ़सोस करोगे।
तुम जैसे हो, वैसे तो कभी हम भी जवां थे॥
सब चीज़ को होता है बुरा हाय! बुढ़ापा।
आशिक़ को तो अल्लाह! न दिखलाए बुढ़ापा॥33॥
अब जितने हो माशूक यह सब याद रखो बात।
जो हो सो करो चाहने वालों की मुदारात<ref>आव-भगत, सम्मान</ref>॥
महबूबो ग़नीमत है जबानी की यह औक़ात<ref>वक्त</ref>।
जब बूढ़े हुए फिर तो हुए ढाक के दो पात॥
सब चीज़ को होता है बुरा हाय! बुढ़ापा।
आशिक़ को तो अल्लाह! न दिखलाए बुढ़ापा॥34॥
अब जिस से रहें साफ़ तो होता है वह गँदला।
अल्लाह न दिखलाए किसी को यह मलोला<ref>दुःख</ref>॥
इस चर्ख़सितमगार<ref>आस्मान, होनी</ref> ने सीने में हसद<ref>जलन, ईर्ष्या</ref> ला।
क्या हमसे जवानी का लिया आह! यह बदला॥
सब चीज़ को होता है बुरा हाय! बुढ़ापा।
आशिक़ को तो अल्लाह! न दिखलाए बुढ़ापा॥35॥
थे जैसे जवानी में पिये जाम<ref>शराब पीने के प्याले</ref> सुबू<ref>घड़ों</ref> के।
वैसे ही बुढ़ापे में पिये घूंट लहू के॥
जब आके गले लगते थे महबूब भबूके।
अब कहिये तो बुढ़िया भी कोई मुंह पे न थूके॥
सब चीज़ को होता है बुरा हाय! बुढ़ापा।
आशिक़ को तो अल्लाह! न दिखलाए बुढ़ापा॥36॥
यह होंठ जो अब पोपले यारो हैं हमारे।
इन होठों ने बोसो<ref>चुम्बन</ref> के बड़े रंग है मारे॥
होते थे जवानी में तो परियों के गुज़ारे।
और अब तो चुड़ैल आन के एक लात न मारे॥
सब चीज़ को होता है बुरा हाय! बुढ़ापा।
आशिक़ को तो अल्लाह! न दिखलाए बुढ़ापा॥37॥
थे जैसे जवानी के चढ़े ज़ोर में सरशख़<ref>मजबूत</ref>।
वैसे ही बुढ़ापे को पड़ी आन के अब पख॥
तकला हुआ तन सूख, रूई बाल रगें नख़।
हल्बा हुए, चखऱ्ा हुए, लप्सी हुए चमरख॥
सब चीज़ को होता है बुरा हाय! बुढ़ापा।
आशिक़ को तो अल्लाह! न दिखलाए बुढ़ापा॥38॥
महफ़िल में वह मस्ती से बिगड़ना नहीं भूले।
साक़ी से प्यालों पे झगड़ना नहीं भूले॥
हंस-हंस के परीज़ादों से लउ़ना नहीं भूले।
वह गालियां, वह बोसों पे अड़ना नहीं भूले॥
सब चीज़ को होता है बुरा हाय! बुढ़ापा।
आशिक़ को तो अल्लाह! न दिखलाए बुढ़ापा॥39॥
क्या दौर था सर दुखने का होता था जब अफ़सोस।
हर गुंचादहन<ref>फूल जैसे मुंह वाला</ref> देख के करता था हद अफ़सोस॥
अब मर भी अगर जावें तो होता है कद अफ़सोस।
अफ़सोस, सद अफ़सोस, सद अफ़सोस, सद अफ़सोस॥
सब चीज़ को होता है बुरा हाय! बुढ़ापा।
आशिक़ को तो अल्लाह! न दिखलाए बुढ़ापा॥40॥
जब जान के बूढ़ा हमें छेड़ें हैं यह दिलख़्वाह<ref>मनमोहक</ref>।
और छेड़ के मज़सिल से उठाते हैं ब इकराह<ref>घृणा के साथ</ref>॥
उस वक़्त तो हम यारो! दमे सर्द से भर आह।
रो-रो के यही कहते हैं अब क्यों मेरे अल्लाह!॥
सब चीज़ को होता है बुरा हाय! बुढ़ापा।
आशिक़ को तो अल्लाह! न दिखलाए बुढ़ापा॥41॥
गर होती जवानी तो अभी धूम यह मचती।
छाती से लिपट दम में कड़क डालते पसली॥
जब कुर्ती और अंगिया की उड़ा डालते धज्जी।
पर क्या करें यारो कि बुढ़ापे ने बुरी की।
सब चीज़ को होता है बुरा हाय! बुढ़ापा।
आशिक़ को तो अल्लाह! न दिखलाए बुढ़ापा॥42॥
वह जोश नहीं जिसके कोई ख़ौफ़ से दहले।
वह ज़ोम नहीं जिससे कोई बात को सह ले॥
जब फूस हुए हाथ थके पांव भी पहले।
फिर जिसके जो कुछ शौक़ में आवे वही कहले॥
सब चीज़ को होता है बुरा हाय! बुढ़ापा।
आशिक़ को तो अल्लाह! न दिखलाए बुढ़ापा॥43॥
करते थे जवानी में तो सब आपसे आ चाह।
और हुश्न दिखाते थे वह सब आन के दिल ख़्वाह<ref>मनमोहक</ref>॥
यह क़हर बुढ़ापे ने किया आह ”नज़ीर“ आह।
अब कोई नहीं पूछता अल्लाह! ही अल्लाह!॥
सब चीज़ को होता है बुरा हाय! बुढ़ापा।
आशिक़ को तो अल्लाह! न दिखलाए बुढ़ापा॥44॥