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होली-3 / नज़ीर अकबराबादी

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फिर आन के इश्रत<ref>सुख, भोग-विलास का सुख</ref> का मचा ढंग ज़मी पर।
और ऐश ने अर्सा<ref>क्षेत्र</ref> है किया तंग ज़मीं पर।
हर दिल को खुशी का हुआ आहंग<ref>इरादा</ref> ज़मी पर।
होता है कहीं राग कहीं रंग ज़मीं पर।
बजते हैं कहीं ताल कहीं जंग ज़मीं पर॥
होली ने मचाया है अज़ब रंग ज़मीं पर॥1॥

घुंघरू की पड़ी आन के फिर कान में झंकार।
सारंगी हुई बीन तंबूरो<ref>तानापूरा या तुम्बुरु। बीन या सितार की तरह का बाजा</ref> की मददगार॥
तबलों के ठुके तबल<ref>तबला</ref> यह साज़ों के बजे तार।
रागों के कहीं गुल कहीं नाचां के बंधे तार॥
ढोलक कहीं झनकारे हैं मरदंग<ref>पखावज की तरह की, किन्तु उससे ज्यादा लम्बी और पतली पुरानी किस्म की ढ़ोलक जो तबले की तरह बजाई जाती है</ref> ज़मीं पर।
होली ने मचाया है अज़ब रंग ज़मीं पर॥2॥

इस रुत में चमन पर भी अजब रंग चढ़ा है।
और जंगलो बन पर भी अजब रंग चढ़ा है।
हर शोख<ref>चंचल</ref> के तन पर भी अजब रंग चढ़ा है।
आशिक़ के बदन पर भी अजब रंग चढ़ा है।
सब ऐश के रंगों में हैं हमरंग ज़मीं पर।
होली ने मचाया है अज़ब रंग ज़मीं पर॥3॥

मारा है निपट होली के रंगों ने अजब जोश।
जो रंग में इक ख़ल्क<ref>जनता, अवाम, दुनियां</ref> बनी फिरती है गुलपोश<ref>फूलों से लदी हुई</ref>।
है नाच कहीं, राग कहीं, रग कहीं जोश<ref>स्वादिष्ट पेय पीना</ref>।
पीते हैं नशे ऐश में सब लोटे हैं मदहोश<ref>नशे में चूर</ref>।
माजू<ref>पिसी हुई भांग जो चाशनी मंे डालकर जमा ली जाती है</ref> कहीं पीते हैं कहीं भंग ज़मीं पर।
होली ने मचाया है अज़ब रंग ज़मीं पर॥4॥

मैख़ानों में देखो तो अजब सैर है यारो।
वां मस्त पड़े लोटे हैं और करते हैं हो! हो!।
मस्ती से सिवा ऐश नहीं होश किसी को।
शीशों में, प्यालों में, सुराही में खुशी हो।
उछले हैं पड़ी बादए-गुलरंग ज़मीं पर।
होली ने मचाया है अज़ब रंग ज़मीं पर॥5॥

”गा गा“ की पुकारें हैं कहीं रंगों की छिड़क है।
मीना<ref>शराब की बोतल, सुराही</ref> की भभक और कहीं सागर<ref>शराब का प्याला</ref> की झलक है।
तबलों की सदाएं<ref>स्वर, आवाज</ref> कहीं तालों की झनक है।
ताली की बहारें कहीं ठिलिया<ref>छोटा घड़ा, गगरी</ref> की खड़क है।
बजता है कहीं डफ़<ref>डफ, लकड़ी के गोल बड़े मेंडरे पर चमड़ा मढ़कर बनाया गया बड़ा बाजा जो लकड़ी से बजाया जाता है। होली में इसे बजाते हुए निकलते हैं।</ref> कहीं मुरचंग<ref>मुंह में पकड़कर उंगलियों से बजाा जाने वाला सुरीली आवाज वाला बाजा</ref>॥6॥

मस्ती में उठा आंख जिधर देखो अहा! हा!
नाचे हैं तबायफ़<ref>वेश्या</ref> कहीं मटके है भवय्या<ref>भाव बता बताकर नाचने वाला</ref>।
चलते हैं कहीं जाम कहीं स्वांग का चर्चा।
और रंग की गलियों में जो देखो तो हर इक जा।
बहती हैं उमड़ कर जमनी गंग ज़मीं पर।
होली ने मचाया है अज़ब रंग ज़मीं पर॥7॥

मामूर<ref>भरे हुए</ref> है खू़बां<ref>सुन्दरियां</ref> से गली कूच ओ बाज़ार।
उड़ता है अबीर और कहीं पिचकारी की है मार।
छाया है गुलालों का हर इक जा पै धुआंधार।
पड़ती है जिधर देखो उधर रंग की बौछार।
है रंग छिड़कने से हर एक दंग<ref>हैरान</ref> ज़मीं पर।
होली ने मचाया है अज़ब रंग ज़मीं पर॥8॥

भागे हैं कहीं रंग किसी पर जो कोई डाल।
वह पोटली मारे है उसे दौड़ के फ़िलहाल।
यह टांग घसीटे है तो वह खींचे पकड़ बाल।
वह हाथ मरोड़े तो यह तोड़े है खड़ा गाल।
इस ढब के हर इक जा पे मचे ढंग ज़मीं पर।
होली ने मचाया है अज़ब रंग ज़मीं पर॥9॥

बैठे हैं सब आपस में नहीं एक भी कड़वा।
पिचकारी उठाकर कोई झमकावे है घड़वा।
भरते हैं कहीं मशक कहीं रंग का गड़वा<ref>लोटा</ref>।
क्या शाद वह होता है जिसे कहते हैं भड़वा<ref>सफरदाई, रंडियों की दलाली करने वाला</ref>।
सुनते हैं यहां तक नहीं अब नंग ज़मीं पर।
होली ने मचाया है अज़ब रंग ज़मीं पर॥10॥

शब्दार्थ
<references/>