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होली-8 / नज़ीर अकबराबादी

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आ झमके ऐशो<ref>आराम</ref> तरब<ref>आनन्द, खुशी</ref> क्या क्या, जब हुश्न दिखाया होली ने।
हर आन खुशी की धूम हुई, यूं लुत्फ़ जताया होली ने।
हर ख़ातिर को ख़रसन्द<ref>खुश</ref> किया, हर दिल को लुभाया होली ने।
दफ़<ref>डफ़</ref> रंगी नक्श<ref>आकृति, शक्ल</ref> सुनहरी का, जिस वक्त बजाया होली ने।
बाज़ार गली और कूचों में गुल शोर मचाया होली ने॥1॥

या स्वांग कहूं, या रंग कहूं, या हुस्न बताऊं होली का।
सब अबरन तन पर झमक रहा और केसर का माथे टीका।
हंस देना हर दम, नाज भरा, दिखलाना सजधज शोख़ी का।
हर गाली मिसरी, क़न्द भरी, हर एक कदम अटखेली का।
दिल शाद किया और मोह लिया, यह जीवन पाया होली ने॥2॥

कुछ तबले खड़के ताल बजे कुछ ढोलक और मरदंग बजे।
कुछ छड़पें बीन रबाबों<ref>सितार के प्रकार का एक बाजा</ref> की कुछ सारंगी और चंग<ref>डफ़ की शक्ल का एक बाजा</ref> बजे।
कुछ तार तंबूरों<ref>तानपूरा</ref> के झनके कुछ ढमढमी<ref>डफ़/डफ़ली/खंजड़ी</ref> और मुहचंग<ref>मुंह में दबाकर उंगलियों से बजाया जाने वाला एक बाजा</ref> बजे।
कुछ घुंघरू छनके छम-छम-छम कुछ गत-गत पर आहंग<ref>गान</ref> बजे।
है हर दम नाचने गाने का यह तार बंधाया होली ने॥3॥

हर जागह थाल गुलालों से खुश रंगत की गुलकारी है।
और ढेर अबीरों के लागे, सौ इश्रत की तैयारी है।
हैं राग बहारें दिखलाते और रंग भरी पिचकारी है।
मुंह सुखऱ्ी से गुलनार<ref>अनार के फूल</ref> हुए तन केसर की सी क्यारी है।
यह रूप झमकता दिखलाया यह रंग दिखाया होली ने॥4॥

पोशाकें छिड़कीं रंगों की और हर दम रंग अफ़्सानी है।
हर वक़्त खुशी की झमकें हैं पिचकारियों की रख़्शानी<ref>कपोल, गाल</ref> है।
कहीं होती है धींगा मुश्ती कहीं ठहरी खींचा तानी है।
कहीं लुटिया झमकती रंग भरी कहीं पड़ता कीचड़ पानी है।
हर चार तरफ खु़शहाली का यह जोश बढ़ाया होली ने॥5॥

हर आन खु़शी से आपस में सब हंस-हंस रंग छिड़कते हैं।
रुख़सार<ref>कपोल, गाल</ref> गुलालों से गुलगूं<ref>गुलाब जैसे रंग वाले</ref> कपड़ों से रंग टपकते हैं।
कुछ राग और रंग झमकते हैं कुछ मै के जाम<ref>प्याले</ref> छलकते हैं।
कुछ कूदे हैं, कुछ उछले हैं, कुछ हंसते हैं, कुछ बकते हैं।
यह तौर ये नक़्शा इश्रत का, हर आन बनाया होली ने॥6॥

महबूब परीरू<ref>परी जैसी शक्ल सूरत वाले</ref> प्यारों की हर जानिब<ref>तरफ</ref> नोका झोंकी है।
कुछ आन रंगीली चलती है कुछ बान उधर से रोकी है।
कुछ सैनें तिरछी सहर<ref>बेदारी, जाग्रति</ref> भरी कुछ घात लगावट जो की है।
कुछ शोर अहा! हा! हा! हा! का कुछ धूम अहो! हो! हो! की है।
यह ऐश यह हिज<ref>आनन्द, मजा</ref> यह काम, यह ढब, हर आन जताया होली ने॥7॥

माजूनों<ref>कुटी हुई दवाओं को शहद या शकर के क़िवास में मिलाकर बनाया हुआ अवलेह</ref> से रंग लाल हुए कहीं चलती मै की प्याली है।
कहीं साज तरब<ref>आनन्द</ref> के बजते हैं दिल शादां मुंह पर लाली है।
सौ कसरत<ref>अधिकता</ref> ऐश मुसर्रत<ref>खुशी, आनन्द</ref> की खुश वक़्ती और खुशहाली है।
कुछ बोली ठोली प्यार भरी, कुछ गाली है कुछ ताली है।
इन चर्चों का इन चुहलों का यह तार लगाया होली ने॥8॥

हैं क्या-क्या सर में रंग भरे और स्वांग भी क्या-क्या आते हैं।
कर बातें हर दम चुहल भरी, खुश हंसते और हंसाते हैं।
कुछ जोगी चेले बैठे हैं कुछ कामिनियों की गाते हैं।
कुछ और तरह के स्वांग बने कुछ नाचते हैं कुछ गाते हैं।
हर आन ‘नज़ीर’ इस फ़रहत का, सामान दिखाया होली ने॥9॥

शब्दार्थ
<references/>