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बसन्त-5 / नज़ीर अकबराबादी

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करके बसंती लिबास सबसे बरस दिन के दिन।
यार मिला आन कर हमसे बरस दिन के दिन।
खेत पै सरसों के जा, जाम सुराही मगा।
दिल की निकाली मियां! हमने हविस दिन के दिन।
सबकी निगाहों में दी ऐश की सरसों खिला।
साक़ी ने क्या ही लिया वाह यह जस दिन के दिन।
ख़ल्क में शोरे बसन्त यों तो बहुत दिन से था।
हमने तो लूटी बहार ऐश की बस दिन के दिन।
आगे तो फिरता रहा ग़ैरों में ही ज़र्द पोश।
हमसे मिला पर वह शोख खाके तरस दिन के दिन।
गर्चे यह त्यौहार की पहली ख़ुशी है जयादः।
ऐन जो रस है सो वह निकले है रस दिन के दिन।

लूटेगा फिर साल भर गुलबदनों की बहार।
यार से मिलले ‘नज़ीर’ आज बरस दिन के दिन॥

शब्दार्थ
<references/>