Last modified on 19 जनवरी 2016, at 14:09

समधिन-2 / नज़ीर अकबराबादी

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:09, 19 जनवरी 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नज़ीर अकबराबादी |संग्रह=नज़ीर ग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

सरापा<ref>सिर से पैर तक का, शिखनख</ref> हुस्ने समधिन गोया गुलशन की क्यारी है।
परी भी अब तो बाजी हुस्न में समधिन से हारी है।
खिची कंघी, गुंथी चोटी, अभी पट्टी लगा काजल।
कमां अब्रू<ref>भवें कमान की तरह</ref> नज़र जादू निगह हर एक दुलारी है।
जबी<ref>ललाट</ref> माहताब<ref>चांद</ref>, आंखें शोख़, शीरीं लब, गोहर दन्दा<ref>मोती जैसे दांत</ref>।
बदन मोती, दहन गुंचा, अदा हंसने की प्यारी है।
नया कमख़्वाब का लहंगा झमकते ताश की अंगिया।
कुचें तस्वीर सी जिन पर लगा गोटा किनारी है।
मुलायम पेट मख़मल सा कली सी नाफ़<ref>नाभि</ref> की सूरत।
उठा सीना सफ़ा पेडू़ अजब जोवन की नारी है।
लटकती चाल मदमाती चले बिछुओं<ref>बिछुआ-पैर की उंगलियों में पहने जाने वाला जेवर</ref> को झनकाती।
भरे जोवन में इतराती झमक अंगिया की दिखलाती।
कमर लहंगे से बल खाती लटक घूंघट की भारी है।

शब्दार्थ
<references/>