Last modified on 19 जनवरी 2016, at 14:33

नारंगी / नज़ीर अकबराबादी

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:33, 19 जनवरी 2016 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

अब तो हर बाग़ में आई है भली नारंगी।
है हर एक पेड़ की मिसरी की डली नारंगी।
हुस्न वालों के भी सीने की फली नारंगी।
देख कर उसकी वह अंगिया की पली नारंगी।
हमने तो आज यह जाना कि चली नारंगी॥

शब्दार्थ
<references/>