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तुम्हारे लिए / पल्लवी मिश्रा

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ढेर सारे जज्बात-
प्रतिपल
हम करते हैं आत्मसात-
परन्तु शब्दों में व्यक्त नहीं कर पाते-
वे अनायास ही
अभिव्यक्ति पा जाते-
कभी अधरों के कम्पन में-
कभी हृदय के स्पन्दन में-
कभी निगाहों की आकुलता में-
कभी स्पर्श की कोमलता में-
कभी अनबुझी प्यास में-
कभी समझ विश्वास में-
मैंने भी कुछ अहसास-
अमूल्य निधि की तरह
सहेजे हैं
अपने हृदय के आसपास-
लेकिन मुखरित नहीं किए-
जैसे कि
मेरा सारा प्यार
तुम्हारे लिए!