Last modified on 12 फ़रवरी 2016, at 12:22

अपंग सोच / निदा नवाज़

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:22, 12 फ़रवरी 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=निदा नवाज़ |अनुवादक= |संग्रह=अक्ष...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

अँधेरी रात कब तक
प्रकाश के चैत्यों पर
व्यंग्य यूँ करती रहे?
सोच कब तक
सिर झुकाए
कब तक
अपनी आहट से भी यूँ
डरती रहे?
और कब तक
मौसम-ए-बारूद में
तर्क के हत्याग्रह
सजाये जायेंगे?
चेतना पर
चित पर
पहरे बिठाए जाएंगे?
या कि नागिन के से गुण
देखकर
अपने बच्चों को निगल ले जाएगें
या कि अपने हाथ-पांव काटकर
अपने अस्तित्व को अपंग करें?
अपने विचारों की तरह
अपने विवेक की तरह।