Last modified on 12 फ़रवरी 2016, at 12:56

हंस / निदा नवाज़

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:56, 12 फ़रवरी 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=निदा नवाज़ |अनुवादक= |संग्रह=बर्फ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

आँखों की दो
पोखरियों में सिमटा
वह हंस
क्षण में बनता है
आकाश भर
और क्षण में
शून्य भर
और झेलता है तनाव
एक पूरे मरुथल भर का
मेरे आग उगलते
इस चिनार शहर में.