Last modified on 12 फ़रवरी 2016, at 13:11

तुम्हारा कश्यप / निदा नवाज़

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:11, 12 फ़रवरी 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=निदा नवाज़ |अनुवादक= |संग्रह=बर्फ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

(बाबा अर्जुन देव मजबूर के लिए)

यह सच है कि अब
नहीं होती अंकुरित
होंठों पर हमारे
केसरी मुस्कुराहटें
हमारे वनों में अब
नहीं गाती है कोई
गडरिया की बेटी

यह भी सच है बाबा
कि अब की बार
हमारी घाटी में
रिसा है उतना पानी
कि जिसको
नहीं निकाल सकता अकेले
तुम्हारा यह कश्यप
लेकिन बाबा
पलट ही जाएंगे इतिहास के पन्ने
देर या सबेर
और पूरी हो ही जाएगी
पत्थरीले पहाड़ों के बीच
निर्वासन का ताप झेलने वालों के
दिल की झोलियों में
संभाली हुई
घर वापस लौटाने की
उत्कट इच्छा
वह इच्छा जो
पत्थरों के बीच रह कर भी बाबा
तुम्हारी बूढी आँखों को
बख़्श देती है
शीशों से सुन्दर सपने
और रचना सृष्टि का साहस.