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किसान गीत / कुंदन अमिताभ

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जागऽ हो किसान अबेॅ होय गेल्हौ भोर
चलऽ हो किसान चलऽ खेतऽ के ओर।
कंधा पेॅ हऽर राखी बरद केॅ हाँकतें
बाँधी केॅ मुरेठा बैहार दन्नेॅ ताकतें
खेतऽ पर पहुँचऽ कामऽ के नै छोर।
हऽर-बरद सें खेत केॅ जोततें
खुललऽ सरंग में रौद सें नहैतें
दरबनिया लगाबऽ लगाय लेॅ जोर।
दरबनिया लगाबऽ लगाय लेॅ जोर।
तपलऽ दुपहरिया में कलेबऽ करी केॅ
प्यासलऽ बरद केॅ पानी पिलाय करी केॅ
लू संग भजाबै जेरऽ छै कामऽ के शोर
भर दिन काम करी साँझैं वू लौटतै
आपनऽ दुःख लोर केकरौ नै बाँटतै
जाय छै तहियो खेत नै आबै छै आँखी में लोर।
भारत के किसान ऐन्हऽ आरू के होतै
एकरऽ रंग दुनिया नै केकरो होतै
देशवासी के पेट भरै लेॅ दै छै खेती पेॅ जोर।