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फागुन / धनन्जय मिश्र

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रंग-बिरंगा फूल छै, खुशबू परम अपार,
वासंती मधुमास छै, टपकै छै मधुधार।

फागुन वसंत केॅ मिलन, पुरुष-प्रकृति साथ,
सिक्का फागुन में चलै, सिर्फ प्यार छै हाथ।

फागुन रस के धार छै, फागुन मस्त बहार,
जतना पीभै प्रेम रस, ओतनै बढ़थै प्यार।

भरलेॅ नई जवानी छै, मन छै लाल गुलाब,
लाल गाल छै मुख कमल, भरलोॅ नयन शबाब।

पिचकारी में रंग छै, नभ में उड़य गुलाल,
कहीं नगाड़ा छै बजे, लागै रूप कमाल।

रंग अबीर के साथ छै, छुप-छुप नंद किशोर,
राधा रंग डुबाय केॅ, भागै गोकुल ओर।

लरकाना के राधिका, गोकुल कृष्ण कन्हाय,
वृन्दावन प्रांगन हुए, मिली केॅ रास रचाय।

होली मस्ती पर्व छै, मस्ती में सब यार,
के सुनै केकरा कहै, बरसै छै रस धार।

कहे ‘धनंजय’ सब सुनो, होली पावन पर्व,
आय मिलोॅ सब प्यार सें, ऐपर हमरा गर्व।