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सुक्ति-उक्ति / धनन्जय मिश्र

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दुर्गा पूजा भक्ति के, वर पावै रोॅ काल,
सब मन के संगीत ई, हंसी खुशी रोॅ ताल।

देवी जे सिंहवाहिनी, खल के करे संहार,
शरण ऋतु के प्राण जे, सुख केरोॅ संसार।

गीत नाद रस गंध लेॅ, ऐलोॅ छै सोहराय,
बहिन बिहैली मायके, देखी गदगद भाय।

ईद परब के याद सें, नाँचै हृदय विभोर,
मोॅर मिठाई, सेवै सें, रसमय जीहा ठोर।

क्रिसमस हेनोॅ दिन सदा, रहै हृदय आ जीह
यही दिनां तेॅ भूमि पर, ऐलै ईसा मसीह।

गांधी बाबा छै अमर, भारत केरोॅ शीश,
हुनका सब लोगें कहै, कलियुग केरोॅ ईश।

मतछिमतोॅ छै आदमी, इखनी काटै पेड़,
गिरै एक दिन मूं भरी, लागतै जखनी ऐड़।

बरखा नै होतै जरौ, गरमी पड़तै खूब,
काटी लेॅ पर्वत, बिरिछ, इखनी तोरा हूब।

कल पछतैतै कानतै, घुटतै जखनी सांस,
तखनी नै होतै यहाँ, नीर काठ आ बांस।

कारोॅ-कारोॅ मेघ छै, उजरोॅ बिजुरी रेख,
जना सिलौटी पर रहै, खल्ली लिखलोॅ लेख।

तड़का तड़कै जोन रं, मन के भले डराय,
नद्दी, नाला, वृक्ष केॅ, मजकि खूब अघाय।

फागुन केरोॅ पालकी, दुल्हा बनलै चैत,
ठांव-ठांव पर फूल छै, मांतै गंध अचेत।

दीन-हीन परिवार के, आखिर खुल्लै पोल,
सुरसा रं परिवार छै, बजतै फुट्टा ढोल।

जेकरा बढ़थैं ही रहै; अजगर रं परिवार,
निगली जैते एक दिन, ओकरौ ई व्यवहार।

मुम्बई सें आसाम तक गरजै छै आतंक,
गिरै गाछ रं आदमी, लोटेॅ लागलै भंक।

ई आतंकी वास्तें, दया-मोह नै दीन,
ई जीवन पर मौत रं, बरछी रं आसीन।

जना रता इंजोरिया, होने रितू वसंत,
तिरिया तेॅ तिरिया छेकै, मोहै साधू-संत।

घर भर के सुख नींद लेॅ, हेनोॅ दुष्ट दहेज,
जीवन भर जलथैं रहै, दुल्हिन केरोॅ सेज।

ई दहेज हेनोॅ असुर, सबकेॅ करै तबाह,
भले लगेॅ वरदान ई, लेकिन छेकै दाह।