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आशा / अनिरुद्ध प्रसाद विमल

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देखॅ प्रीतम
गरजी-गरजी केॅ बरसै वाला
ई भादॅ के मेघ।
जानी केॅ भी अनजान नै बनॅ हमरॅ गीत
ई हमरे आँखी के लोर छेकै
जे बही रहलॅ छै यै आसॅ में
कि तोंय ऐभौ
आरो हमरा कानतेॅ देखी केॅ
भीर लेभौ आपनॅ कोमल बाहीं में
आरो पोछी देभौ हमरॅ लोर
फेरू ”पगली“ कही केॅ हाँसभौ
मतुर हमरा हाँसत नै देखी केॅ
गुदगुदाय देभौ हमरा
आरो हमरा अंग-अंग पर तोरॅ अंगुली के रेंगथैं
खिलखिलाय केॅ हाँस’ लागबै हम्में
सब टा दुक्खॅ केॅ भूली केॅ
बोलेॅ-हाँसेॅ लागबै खुली केॅ
दाँतॅ सें बिजली छिटकाय केॅ
तोरा थोड़ॅ दूर ठेली केॅ।