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धोरैया / परमानंद ‘प्रेमी’

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सखि हे नाहैल’ गेलों पोखरिया धोरैयां मारै नजरिया ना॥
पोखरी पहाड़ऽ प’ गैया चराय छेलै,
रही-रही टेरै बँसुरिया।
कदमों गाछी के छांहों में बैठी,
देखै मुझरकां चोलिया॥
धोरैयां मारै नजरिया ना सखि हे नाहैल’ गेलों पोखरिया॥
भींजलऽ कपड़ा सें कतन्हौं झांपौं,
तैयों झलकै बदनमां।
गैया धोरैया क’ लाजो नै लागै
टक-टक ताकै गोदनमां॥
धोरैयां मारै नजरिया ना सखि हे नाहैल’ गेलों पोखरिया॥
झटपट नाही क’ ऊपर भेलों,
पिन्हलौं साड़ी सतरंगी।
माथा सें बालऽ के पानी निचोड़लों,
झाँपी वदन आरो भृंगी
धोरैयां मारै नजरिया ना सखि हे नाहैल’ गेलों पोखरिया॥
कहै ‘प्रेमी’ सुनऽ हे लछमी,
बड़ी भगवन्तऽ धोरैया।
वैं बेचारा क’ गारी की दै छौ?
नाहल’ आबऽ नै पोखरिया॥
धोरैयां मारै नजरिया ना सखि हे नाहैल’ गेलों पोखरिया॥