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दूर-दूर कैन्हें छोॅ; आवोॅ / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय

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दूर-दूर कैन्हें छोॅ; आवोॅ
जिनगी भर के साथ निभावोॅ।

खाली मनुहारे-मानोॅ में
जों बीतेॅ सौंसे छो जिनगी
तेॅ समझोॅ कि तन ई, मन ई
जेना कि चिनगी-चिनगारी।
जों तोरा सें आना मुश्किल
तेॅ हमरै ही पास बुलावोॅ!
दूर-दूर कैन्हें छोॅ; आवोॅ!

सुखलोॅ बैशाखे नै खाली
सावन केरोॅ साथ जरूरी
योग कभी नै जागेॅ पारेॅ
जों जागेॅ ही दूरी-दूरी
आ-सलिल के साथें सें तेॅ
प्राण बनै छै। मान मिटावोॅ।
दूर-दूर कैन्हें छोॅ आवोॅ!