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छपरी पर गमलै छै कागा, के ऐतै? / अमरेन्द्र

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जहिया सेँ बाबू रोॅ अचके सेँ प्राण गेलै
गोतियो भी डीहो दिश अनचोको नै ऐलै
आसरा मँे औसरा पर बैठलोॅ छी केकरा लेॅ
बचलोॅ ई औरदा अकारथ ही जैतै।

ऐंगनो उदामोॅ छै। पहिलो सेँ की छेलै?
हिस्सा रोॅ गाछ-बिरिछ काकां सब लै गेलै
जों कजायद पहुनो कोय अनचोके आविये जाय
चिंता सेँ गललोॅ जावँ-की देवै? की खैतै?

ठेका मेँ पीपर आ बोर गाछ कटी गेलै
पोखर भतैलै, भैयारी में बँटी गेलै
बचलोॅ इनारा के पानी कदोड़ छै
कंचन रँ ठनकोॅ टा पानी हौ! के पैतै।

पछिया केॅ की कहियै, पुरबैं जी जारै
उस्सट रँ जिनगी सेँ कोमल मन हारै
मतछिमतोॅ मौसम तेॅ आवै लेॅ बाँकी छै
जेठो-बैशाखोॅ रँ धाव हुवै चैतै।