Last modified on 11 जून 2016, at 07:50

वे थे / वीरू सोनकर

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:50, 11 जून 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वीरू सोनकर |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

वे थे,
अपने होने की तमाम आपत्तियों के बाद भी
वे थे राजधानियों के गाल पर उग आये किसी चेचक के दाग से,
मॉल में आ गए किसी अवांछनीय वस्तु की दुर्गन्ध से,

वे थे,
अपने घरो में टाट के पर्दो के पीछे खुद को छुपाये हुए
कॉलेज के ज़माने की प्रेमिकाओं के बदल जाने पर
खुद का तालमेल बिठाते हुए

वे थे,
जबकि उन्हें नहीं होना चाहिए था
यह अधिकांश लोगो की राय थी!

वे थे,
उनके ड्राइंग रूम में पड़े
अखबार के दूसरे-तीसरे बिना पढ़े छूट गए पन्नों पर,
दरवाजे को ठकठकाते दूधवाले के भेष में,
उनके स्कूल गए बच्चों को समय से घर लाते हुए
वे थे, हर तरह से अपनी अनुपस्थिति को नकारते हुए

और सबसे आश्चर्यजनक बात यह थी कि वे जो थे,
बहुमत की राय से खुद को सहमत पाते थे

भारी उचाट मन से सर को झुकाये
अपने होने की लज्जा के साथ गले तक जमीन में धँसे,
सड़क पर
अचानक से सामने आये
उनकी कार के ब्रेक और हार्न के बीच
किसी भद्दी सी गाली के सम्बोधन-परिचय में
वे थे!