Last modified on 14 जून 2016, at 02:11

बीमार रामदीन / प्रदीप शुक्ल

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:11, 14 जून 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रदीप शुक्ल |अनुवादक= |संग्रह=अम...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

रामदीन
लगते हैं बिल्कुल बीमार
सुबह से ही
बैठे हैं घेर कर दुआर

बोल रहे
इमरजेंसी कब ख़तम होगी?
सच्ची में गाँधी था
बहुत बड़ा जोगी,
अच्छा है
छोड़ गया जल्दी संसार

लाना था
अभी उन्हें मिट्टी का तेल
घर के अन्दर चूहे
दंड रहे पेल
कहते,
अमरीका से और लो उधार

जुम्मन के लड़के को
हाँथ मत लगाना
मेरा वो बचपन का
यार है पुराना
गाय तेरी बंधी होगी
और किसी द्वार
रामदीन
लगते हैं बिल्कुल बीमार
सुबह से ही
बैठे हैं घेर कर दुआर