Last modified on 14 जून 2016, at 09:54

हर तरफ भारी तबाही हो गई है / राकेश जोशी

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:54, 14 जून 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राकेश जोशी |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGha...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

हर तरफ भारी तबाही हो गई है
ये ज़मीं फिर आततायी हो गई है

कुछ नए क़ानून ऐसे बन गए हैं
आज भी उनकी कमाई हो गई है

जब से हम पर्वत से मिलकर आ गए हैं
ऊँट की तो जग-हँसाई हो गई है

फिर किसानों को कोई चिठ्ठी मिली है
फिर से ये धरती पराई हो गई है

मैं तुम्हारे पास आना चाहता हूँ
बीच में गहरी-सी खाई हो गई है

वो तो बच्चों को पढ़ाना चाहता है
पर बहुत महंगी पढ़ाई हो गई है