Last modified on 15 जून 2016, at 04:30

पनाह / विजय कुमार सप्पत्ति

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:30, 15 जून 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विजय कुमार सप्पत्ति |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

बड़ी देर से भटक रहा था पनाह की खातिर;
कि तुम मिली!सोचता हूँ कि;
तुम्हारी आंखो में अपने आंसू डाल दूं...
तुम्हारी गोद में अपना थका हुआ जिस्म डाल दूं....
तुम्हारी रूह से अपनी रूह मिला दूं....

पहले किसी फ़कीर से जानो तो जरा...
कि,
तुम्हारी किस्मत की धुंध में मेरा साया है कि नही!!!!