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संवेदना / शैलेन्द्र चौहान

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घर के निचले तले में
ए सोफ़िस्टिकेटेड साउण्ड-सिस्टम पर
उस डॉक्टर को
नाम जिसका भूल चुका हूँ अब

नीले हल्के प्रकाश में
सोफ़े और कुर्सियों के बीच बैठ
पाकिस्तानी गायिकाओं की
दर्द भरी गज़लें
धीमी आवाज़ में सुनते देख
सिहर गया था मैं

मेडिकल कॉलेज के
अंतिम वर्ष के उपरांत
चार-पाँच वर्षों तक चले
प्रेम-प्रसंग के बाद
धीरे-धीरे एक दूसरे से
कन्नी काटने लगे थे वे

अपने प्रेम की परिणति
चाहता था पुरुष डॉक्टर विवाह में
बावजूद उस ठंडेपन के
जो उनके संबंधों में
बुरी तरह हो चुका था व्याप्त

वह महिला डॉक्टर
कुछ ही वर्ष पूर्व तक
मेरे देखते-देखते उसका शरीर
कुछ इस तरह भर गया था
मुझे बेहद आश्चर्य था कि कैसे हो गई
वह इतनी मोटी!

छोटी बहनों की परवरिश और
ज़िम्मेदारियों के नाम पर
विगत तीन वर्षों से
रही थी टाल
डॉक्टर के प्रेम-अनुरोध को
जो अब तक न केवल
हो चुकी थीं बड़ी बल्कि
एक के प्रेम-विवाह के बाद
दूसरी के इश्क के चर्चे
मशहूर थे शहर में बेतरह

उन्हीं दिनों
एक बाबूनुमा समाजवादी युवक
खादीसिल्क के कुर्ते-पायजामें में सुसज्जित
लगातार बैठा पाया जाता रहा
महिला डॉक्टर की क्लिनिक पर

अर्जित की उत्साहजनक सफलता
डॉक्टरनी के प्रेम में
उसने
डॉक्टरनी की सभी शर्ते
कर ली थी मंजूर जो थीं
नारी-स्वतंत्रता के हक़ में

ख़बर पहुँची उस प्रेमी डॉक्टर तक जब
उसका चेहरा हो गया मलिन, उदास
कर नहीं पाया तय कि क्या करे
सिवाय सुनने के दर्द भरी गज़लें

ऐसे मंे एक मित्र जो
उसके प्रति गहरी
सहानुभूति रखता था
मुझे उस डॉक्टर के घर ले गया

थी उसकी साउण्ड-सिस्टम
और ग़ज़लों में पूरी रुचि
वहाँ पहुँचकर जो हुई अनुभूति पहली
हल्के नीले प्रकाश की प्रतिक्रिया थी
कहीं वह डॉक्टर
सम्मोहन-विशेषज्ञ तो नहीं

फिर उस डॉक्टर के निरीह चेहरे
और दर्द भरी ग़ज़लों का जादू
मुझे अपने सीने में पल रहे
दर्द के पास ले गया
कुछ इतने पास कि मैं उस दर्द से
एकमेक हो गया

वह जादू था कुछ इतना असरदार
बच नहीं सका उसके
प्रभाव से मैं उस क्षण।