Last modified on 17 अप्रैल 2008, at 18:38

वज़न/ जयप्रकाश मानस

Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:38, 17 अप्रैल 2008 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

धरती का वैभव उँचाई आकाश की

सूरज की चमक या हो

चंदा की चांदनी

पूरी भलमनसाहत

सारा-का-सारा पुण्य

समूची पृथ्वी पलड़े में

चाहे रख दो सावजी

डोलेगा नहीं काँटा

रत्ती भर

किसी ने रख दिया है चुपके से

रत्ती भर प्रेम दूसरे पलड़े में