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चरबाहा / पतझड़ / श्रीउमेश

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अलगर्जी चरबाहा आबी खेलै छेलोॅ वतेॅ
झगड़ा झाँटी घरेतलक; हमरा गाछी तर हरदम मेल॥
हमरा डारी पर उमगी केॅ दोल दोलिच्चा खेलै छै॥
हम्में समझैछी गोदी में हमरे चिलका किलकै छै॥
ऊ वत्सलता अमर प्यारके धारतलक विसखैलोॅ छै।
पतझड़में, पतझड़ गाछी के दसाहीन भेॅ गेलोॅ छै॥