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रब्बो / पतझड़ / श्रीउमेश

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रब्बो होलोॅ छै अबरी गिरहस्तोॅ के भरलै भन्डार।
नाची उठलै हँसी-खुसी में सब के ई सुन्दर संसार॥
अधपकुओॅ बूट के झाड़ फिरंगी लानलेॅ छै अलगाय।
बनतै सोन्होॅ-सोन्होॅ ओही झाड़ोॅ केॅ देतै झरकाय॥
चटकारी-चटकारी केॅ ई सभ्भैं खैतै नोंन मिलाय।
ओही के उत्साह बड़ा छै हमरा सेनैं कहलोॅ जाय॥
सोन्होॅ-सोन्होॅ गंध उड़ै छै जाता के पिसलोॅ सत्तू।
बिसुआ परबोॅ के ई छेकै साज सिंगार कलावत्तू॥