आबै नै छै धूप कहीं, नै गरमी के कड़कड़िया रौद। ताल-तलैया भरी गलोॅ छै, भरलोॅ छै पानी सें हौद॥ तृप्त भेॅ गेलै गाछ-गछैली, हरा भरा होलै संसार। गैलोॅ गेलै मुक्त कंठ सें, बारहमासा-देस-मल्हार॥ हमरा बगलोॅ के खेतोॅ में रोपनी गाबेॅ लागत गीत। ढंठवाहा-बीहनवाहा के उमगी उठलै पिछला प्रीत॥