यै पतझड़ में पतबिछनी, पत्ता केॅ आज हलोरै छै। यहेॅ एक छै हमरी सक्खी, ठुट्ठोॅ गाछ अगोरै छै॥ लागै छै सवरीं बोढ़ै छै, रामोॅ के अगवानी में। केतना छै उत्साह-प्रेम, एकरा यै विगत जवानी में॥ कखनूँ चिलका केॅ लेॅ केॅ, अँचरातर दूध पिलाबै छै। कखनूँ बेटी के ढीलोॅ हेरै छै, जी बहलाबै छै॥