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रामकली / प्रदीप शुक्ल

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चारि बजे हैं
खटिया पर ते
बस उतरी हैं रामकली

हैण्डपम्प ते
पानी भरिकै
लाई हैं दुई ज्वार
लकड़ी कै कट्ठा पर जूठे
बासन ते है वार

बिन अवाज
पूरे आँगन मा
बस दउरी हैं रामकली

पौ फूटै तो
लोटिया लईकै
बहिरे बाहर जायँ
लउटैं तो लोटिया फ्याकैं
औ' ग्वाबरु लेयँ उठाय

रपटि परी हैं
डेलिया लईकै
फिरि सँभरी हैं रामकली

दूधु दुहिनि
बर्तन मा डारिनि
अब यहु जाई बजार
बचा खुचा लरिकन के खातिर
रखिहैं पानी डार

महिला दिवस म
हँसिया लईकै
निकरि परी हैं रामकली