Last modified on 4 जुलाई 2016, at 01:40

मेरी छाया / श्रीनाथ सिंह

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:40, 4 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=श्रीनाथ सिंह |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

अम्मा ने जब दीप जलाया।
मैने देखी अपनी छाया।
मुझ सी ही है सूरत सारी।
बहुत मुझे वह लगती प्यारी।
जब जब मैं बिस्तर पर जाता।
उसे प्रथम ही लेटा पाता।
उसको कुत्ते काट न सकते।
उसको दादा डाट न सकते।
वह घटती बढ़ती मनमाना।
बना न कोई है पैमाना।
साथ हमारा कभी न तजती।
जब मैं भगता वह भी भगती।
एक रोज मैं उठा सवेरे।
रहा उसे आलस ही घेरे।
खेतों में बिखरे थे मोती
पर थी वह घर में ही सोती।
पूरब में जब निकला सूरज।
वह भी आ पहुंची बिस्तर तज
उसे साथ ले आया घर में।
उस सा मित्र न दुनियां भर में।