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रतजगा / जयप्रकाश मानस

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चूहा

नहीं कुतर सकता

तरकारी, रोटी, फल या नींव

अंधेरे की आड़ में भी

नज़रों से बचकर

सेंधमार चोर की तरह

होती भर रहे आवाज़


चूहा मारने के लिए

कतई ज़रूरी नहीं

सौ जनों की

बस

कोई एक गाता रहे बीच-बीच में

अपनी बारी के रतजगे में


देखना

सुबह तक साबुत बच जायेगा

घर

यानी सभी भाइयों का सपना

चूहों से