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लाइफ़ सर्टिफिकेट / हरीशचन्द्र पाण्डे

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आज उन्हें जीवित होने का प्रमाण-पत्र लेना है
आज बाबूजी पेंशन दफ़्तर जाएँगे

परख रहे हैं अभी
अपने हाथों का ज़ोर और पैरों की टेक
जैसे कभी अखाड़े में उतरने से पहले परखा करते थे

पुरानी पेंट के बने झोले में रख लिये हैं उन्होंने पेंशन के काग़ज़ात
अब सोच रहे हैं क्या-क्या भूल गये हैं

नहीं, वहाँ नहीं दिखानी है उन्हें अपनी जर्जर किडनी
दिल के दौरे की रिपोर्ट भी नहीं
न शुगर की रिपोर्ट न बी.पी. की
बस दिखाना है कि हम जीवित हैं

पोते को साथ ले
एक रिक्शे से चल पड़े हैं बाबूजी...

उतरिए बाबूजी उतरिए
आ गया पेंशन दफ़्तर
सँभल के उतरिये झटका न लगे
कहीं कूल्हे की हड्डी दुबारा न उतर जाये

उनकी छड़ी ने छू ली है धरती
छड़ी का कम्पन ही शरीर का कम्पन है
क्या पता प्राणों का कम्पन भी शामिल हो इसमें
सिर तक पूरा शरीर कह रहा है
ना ना ना

क्या कहा उत्तर नहीं पाएँगे आप?
बाँह गह कर भी नहीं?
बाबूजी ने अपनी गरदन ही घुमा ली है...

अच्छा रुकिए
यहीं बुलाकर लाते हैं पेंशन अधिकारी को
दिखाते हैं कि आप जीवित हैं...

...हाँ यही हैं पेंशनर दिव्यदर्शन
देखिए इनकी आँखें कह रही हैं कपास की ओट से
-मैं ही हूँ दिव्यदर्शन
देखिए इनके होठ तस्दीक करने जा रहे हैं नाम

पर ये क्या
ग्रह नक्षत्र दिशा घड़ी देख
सहóों में से छाँटकर रखे गये एक सुन्दर से नाम के
ये कैसे अव्याकरणीय हिज्ज़े हो गये हैं
थाती में मिली जाति तालू से चिपक कर रह गयी है

बाबू दि.द. बड़े ग़ौर से देख रहे हैं
उनके होठों ने अपनी शक्तियाँ डेलीगेट कर दी हैं उनकी आँखों को

पहचाने जाने वाली आँखें देख रही हैं पहचानने वाली आँखों को
-कल तक हम भी थे तुम जैसे ही
-हम भी होंगे कल तुम जैसे ही
अनन्त है दो जोड़ी आँखों का यह परिसंवाद...

उधर पास में गठरी-सी एक विधवा उपस्थिति कह रही है
हम भी जीवित हैं
हमें भी चाहिए एक प्रमाण-पत्र
उसकी गुड़ीमुड़ी असहजता में
इसके पहले यहाँ कभी न आना शामिल है

हाँ, कोई चला गया अँगूठा दिखाकर उसे
वह बढ़ा रही है अँगूठा अपना
और काग़ज़ पर अँगूठे की छाप पड़ रही है

उसके अँगूठे की छाप में
कितनी रेखाएँ रह गयी हैं अभी तक अघिसी
देखना है।