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बच्चे की आँख में / पंख बिखरे रेत पर / कुमार रवींद्र

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सामने कैलेंडर है
   बच्चा है
   बच्चे की आँख में कबूतर है
 
   कमरे में दिन है
   धूप है-हवाएँ हैं
   नीले आकाश हैं
   परियों की बातें हैं
   नदियों के घाट हैं
   गाछ-हरी घास हैं
 
   खिड़की के बाहर
   जो पीपल है
   उसकी परछाईं भी अंदर है
 
   खुले हुए दरवाजे
   आर-पार फैले हैं
   सपने-ही-सपने
   फूल और पत्तों के
   आपस के रिश्ते
   सारे हैं अपने
 
   यह टापू साँसों का
   जिस पर हैं यादें
   यहीँ सूरज का घर है