Last modified on 25 मार्च 2008, at 17:40

देवेन्द्र आर्य

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:40, 25 मार्च 2008 का अवतरण (new)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

देवेन्द्र आर्य की कुछ ताज़ा ग़ज़लें

    • -**

ग़ज़ल 1 --.-- यह भी हो सकता है अच्छा हो, मगर धोखा हो क्या पता गर्भ में पलता हुआ कल कैसा हो

भाप उड़ती हुई चीज़ें ही बिकेंगी अब तो शब्द हो, रेह हो, सपना हो या समझौता हो

यूँ तो हर मोड़ पे मिल जाता है मुझसे लेकिन इस तरह मिलता है जैसे कि कभी देखा हो

जाने कितनों ने लिखी अपनी कहानी इस पर फिर भी लगता है मेरे दिल का वरक सादा हो

रौशनी इतनी ज़ियादा भी नहीं ठीक मियाँ ये भी हो सकता है आँखों में कोई सपना हो

    • --**

ग़ज़ल 2 मेरी भी आँख में गड़ता है भाई मगर रिश्तों में वो पड़ता है भाई

जमाने की नहीं परवाह लेकिन वही आरोप जब मढ़ता है भाई

खरी खोटी सुनाके लड़के मुझसे फिर अपने आप से लड़ता है भाई

जिसे मैं भूल जाना चाहता हूँ बराबर याद क्यों पड़ता है भाई

भले कितना ही सुन्दर हो, सफल हो मगर सपना भी तो सड़ता है भाई

मुझे लगता है मैं ही बढ़ रहा हूँ मेरे बदले में जब बढ़ता है भाई

जिसे तुम शान से कहते हो ग़ैर वो अव्वल किस्म की जड़ता है भाई

ये मामूली सा दिखता भाई चारा बहुत मंहगा कभी पड़ता है भाई

    • -**

ग़ज़ल 3 --.-- आयो घोष बड़ो व्यापारी पोछ ले गयो नींद हमारी

कभी जमूरा कभी मदारी इसको कहते हैं व्यापारी

रंग गई मन की अंगिया-चूनर देह ने जब मारी पिचकारी

अपना उल्लू सीधा हो बस कैसा रिश्ता कैसी यारी

आप नशे पर न्यौछावर हो मैं अब जाऊँ किस पर वारी

बिकते बिकते बिकते बिकते रुह हो गई है सरकारी

अब जब टूट गई ज़ंजीरें क्या तुम जीते क्या मैं हारी

भूख हिकारत और गरीबी किसको कहते हैं खुद्दारी?

दुनिया की सुंदरतम् कविता सोंधी रोटी, दाल बघारी

    • -**

ग़ज़ल 4 --.-- किसी को सर चढ़ाया जा रहा है कोई रक्तन रुलाया जा रहा है

ये आँखें आधुनिक दिखने लगेंगी नया सपना मंगाया जा रहा है

जो पहले से खड़ा है हाशिए पर वही बाँए दबाया जा रहा है

कथाओं में नहीं अंट पा रहा जो उसे कविता में लाया जा रहा है

बुजुर्गों ने जिसे पोसा है अब तक वो रिश्ता अब भुनाया जा रहा है

हमारे बीच में जो अनकहा था वो शब्दों से मिटाया जा रहा है

मैं कुर्बानी का बकरा तो नहीं हूँ? बड़ी इज्जत से लाया जा रहा है

    • -**

- रचनाकार – देवेन्द्र आर्य की पहचान उनकी नए तेवर, नए अंदाज़ की ग़ज़लें हैं. रचनाकार में देवेन्द्र की कुछ अन्य विप्लवी किस्म की गज़लें आप यहां - http://rachanakar.blogspot.com/2005/09/blog-post_06.html , यहाँ - http://rachanakar.blogspot.com/2005/08/blog-post_16.html तथा यहाँ - http://rachanakar.blogspot.com/2005/08/blog-post_20.html पर पढ़ सकते हैं.

     पहली पहली रेटिंग आप करें [?]