ऐसी गहन आई हाथ को जगत भुलानो कहन में।
कहत कहानी कर्म की रैन देश और साँझ हो।
जैसई बालक गोद में चली खिला के बाँझ हो।
आप हिरानो आप में ढूंढत फिरत बजार।
बूझ-बूझ के पच मुवा भूलो मर्म अपार हो।
प्रीतम को चीन्हों नहीं गयो न सिर को भार।
बेजल के दरयाब में बही खरेरी धार हो।
जूड़ीराम जग झूठ है झूठई इनको साथ।
ठाकुरदास सतगुरु मिलें भयो अचल औबात हो।