अभी नहीं सीख पाया मैं
कच्ची मिट्टी से पक्के बर्तन बनाना
यह हुनर पाने
चलना होगा कहीं तपती रेत पर
नंगे पांव
पिरोने होंगे बिखरे मोती
उस नाजुक डोर में
जो छूने मात्र से ही टूट जाती है
खोजना होगा उन अनगिनत रास्तों में से एक
जो ले जाएगा कल्पना के महल के
पहले पायदान तक
जोड़ने होंगे नए शब्द रचना में
ताकि वह उत्कृश्ट हो
टूटना होगा बड़े ढेले से
सूक्ष्तम मृदा कणों में एक बराबर
तपना होगा अनुभव की भट्ठी में
तभी दे पाऊँगा मैं रुप मृतिका को।