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भ्रम / पवन चौहान

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यादों के समंदर के बीच
क्षितिज की ओर नजरें गड़ाए
मिलन की आस में बैठा
शायद कभी तो
हॉं, जरुर कभी
सिमटेंगी दूरियां
पिघलेगा पत्थर दिल
हवा में होगी फिर वही हलचल
सांसों में वही खुश्बू
लहरों में होगा वही उन्माद
किनारों को समेटने का उत्साह
लेकिन हर बार की तन्हाई पर
टूटता है भ्रम
पाता हूँ खुद को
अनजान राहों के ताने-बाने से घिरा
बिल्लकुल तन्हा
आकाश और धरती की तरह।