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कभी-कभी / पवन चौहान

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कभी- कभी लगता है मुझे
मैं कर सकता हूँ कुछ भी
हंस सकता हूँ बेखौफ
बिना किसी डर के
दे सकता हूँ उपदेश
अपने पड़ोसी को
यहां वहां फैंके गए उसके
घर के कचरे पर

देरी से आने
और लाइन में लगे बिना ही
सबसे पहले
डिपू का राशन लेने पर

बेटे की शादी में
सुबह से लेकर
देर रात
कई दिनों तक
बेफिजूल जोर-जोर से
बजने वाले डीजे पर

सार्वजनिक रास्ते को अपना कह
रोकने
और पार्किंग स्थल के बजाय
यहां-वहां गाड़ी खड़ी करने
और मजदूर को उसके रुपयों के लिए
बेवजह तंग करने पर

बहुत सी ऐसी बातें
दिलाती रहती हैं मुझे गुस्सा
बढ़ाती रहती हैं मेरी पीड़ा
और ब्लड प्रेशर भी

परंतु...
आइने पर नजर पड़ते ही
मेरा सारा गुस्सा, पीड़ाएँ
हो जाती हैं धराशायी
और मैं ढूँढने लगता हूँ
अपने छुपने का स्थान।