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जानवर / वाल्ट ह्विटमैन

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{{KKRachna |रचनाकार=वाल्ट ह्विटमैन |अनुवादक=तरुण त्रिपाठी |संग्रह=

मैं सोचता हूँ कि
मैं पलट कर अब जानवरों के साथ रहता;
वे इतने सौम्य और आत्मनिर्भर होते हैं
मैं खड़ा उन्हें देखता रहता हूँ देर तक

वे अपने हालात पर पिनपिनाते नहीं हैं,
पसीने से तर-ब-तर नहीं हो जाते हैं वे;
वे रात के अँधेरे में जाग कर
रोते नहीं अपने पापों के लिए;
ईश्वर के प्रति अपने कर्तव्यों पर विमर्श करते हुए
वे पकाते नहीं हैं मुझे;
उनमें ना ही कोई असंतुष्ट होता
और ना ही कोई पीड़ित है
अधिक से अधिक चीज़ों पर स्वामित्व पाने के रोग से;
वे एक-दूसरे की स्तुति नहीं करते
और ना ही उनके जाति के किसी हजार बरस पहले रहने वाले की;
पूरी पृथ्वी पर
कोई आदरणीय नहीं है
उनमें
और न ही कोई ना-ख़ुश

इस तरह से वे मुझे अपने नाते दिखाते हैं
और मैं यह स्वीकार करता हूँ;
वे मेरे लिए लाते हैं मेरे ही वज़ूद के चिह्न,
वे दिलाते हैं इनका आभास सादगी से
अपने होने में

मुझे आश्चर्य होता है
कि वे कहाँ पाते हैं इन गुणों को,
इन चिह्नों को;
उनके रास्ते से गुज़रने में कभी बहुत पहले
कहीं मैंने ही तो नहीं गिरा दिए
लापरवाही में...