Last modified on 13 अगस्त 2016, at 22:03

परिवार परिचय / प्रेमघन

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:03, 13 अगस्त 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन' |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

ईस कृपा सों यदपि निवास स्थान अनेकन।
भिन्न भिन्न ठौरन पर हैं सब सहित सुपासन॥२३॥

बड़ी बड़ी अट्टालिका सहित बाग तड़ागन।
नगर बीच, वन, शैल, निकट अरु नदी किनारन॥२४॥

इष्ट मित्र अरु सुजन सुहृद सज्जन संग निसि दिन।
जिन मैं बीतत समय अधिक तर कलह क्लेश बिन॥२५॥

अति बिशाल परिवार बीच मैं प्रेम परस्पर।
यथा उचित सन्मान समादर सहित निरन्तर॥२६॥

रहत मित्रता को सो बर बरताव सदाहीं।
इक जनहूँ को रुचत काज सों सबहिं सुहाहीं॥२७॥

रहत तहाँ तब लगि सों, जाको जहाँ रमत मन।
निज निज काज बिभाग करत चुप चाप सबै जान॥२८॥

एक काज को तजत, पहुँचि तिहि और सँभालत।
होन देत नहिं हानि भली विधि देखत भालत॥२९॥