Last modified on 22 अगस्त 2016, at 10:05

भीष्म-प्रतिज्ञा (फाग) / रामराज

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:05, 22 अगस्त 2016 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मुखपृष्ठ  » रचनाकारों की सूची  » रचनाकार: रामराज  » भीष्म-प्रतिज्ञा (फाग)

टेक- राउर प्रण आज रहे ना, गंगे-सुत कह्यौ पुकारी
हो गिरिवर धारी॥

सनमुख आज समर के सागर, रण सूरमा वीर भटनागर
बडे बडे बलधारी॥

द्रुपद विराट सात्यकी पारथ , सबकै बल कई देब अकारथ॥

विचलित करि पांडव सेना, पल में दल देब बिदारी
हो गिरिवर धारी॥

तीनौ लोक तुम्हातर सहायक, बन्यौल आज जौ जदुकुल नायक
तबौ पीतांबर धारी॥

बाणन मारि विकल कइ देबै, रण आंगन मा नाच नचैबै॥

बचिहौ बिन अस्त्र गहै ना, सांची यह टेक हमारी
हो गिरिवर धारी॥

कि तौ आज कायर बनि जइहौ, रण से भागि पीठ दिखलइहौ
अर्जुन सहित मुरारी॥

कि तौ चक्र गहि कै नारायण, रथ से उतररि पयादे पायन॥

धइहौ जब सहत बने ना, भीषम कै चोट करारी
हो गिरिवर धारी॥

जौ एतना कई कै न देखावौं, तौ शान्तीनु कै सुत न कहावौं
बनौं नरक अधिकारी॥

‘रामराज’ सम्हरेव जगतारन, अस कहि लगे कठिन सर मारन॥

देवन्ह उर धीर धरैं ना, कम्पित सुनि वसुधा सारी
हो गिरिवर धारी॥