तुम कहो
मैं सुनूँगी...
सुनूँगी कहानियाँ रण की
जब कफ़न बाँध कर तुमने
हुँकार भरी थी...
जब अहर्निश तुम
हमारे अस्तित्व की रक्षा में प्रवाहित थे...
तुम्हें देख
साहस बटोरुँगी
गुनगुनाऊँगी वीर रस के गीत
उड़ान भरुंगी निर्बाध...
न डरूँगी किसी तिमिर से
न किसी दुशासन के स्पर्श से...
तुम रहो
कि तुम उत्सर्ग हो
कि तुम्हारी मुस्कान अलंकार है हमारा
कि अन्ततोगत्वा चरित्र हो तुम
मेरे राष्ट्र का...