Last modified on 6 सितम्बर 2016, at 06:15

जिसे भी साथ लिया मैंने हमसफ़र की तरह / हरेराम समीप

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 06:15, 6 सितम्बर 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरेराम समीप |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

जिसे भी साथ लिया मैंने हमसफ़र की तरह
वही बताने लगा ख़ुद को राहबर की तरह

वो मेरा दोस्त है‚ मेरा अज़ीज़ है‚ फिर भी
मुझे सिखाता है चालाकियाँ हुनर की तरह

वो शाख ¬शाख मेरी काटकर जलाता है
मुझे समझता है सूखे हुए शजर की तरह

न हौसले की कमी थी‚ न योग्यता कम थी
बस इक लिहाज का साया था दिल में डर की तरह

बताओ कैसे मुहब्बत बचाये रक्खे कोई
हवा में फैल रही है घृणा ज़हर की तरह

कभी उदासियों की राख झाड़कर तो देख
चमक उठेगा तेरा हौसला शरर की तरह