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तुम सिर्फ़ नाचो / बीरेन्द्र कुमार महतो

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तुम दूसरों को
रिझाने के लिए बनी हो
अपनी थकान,
मिटाने के बहाने
गीत-नृत्य-संगीत की ताल पर
मेरी थकान मिटाओं,
अपनी हाथों से
मदिरा का,
रस-पान कराओ,
मैं रिझूँ
अपनी प्यास बुझाउँ,
इसलिए,
तुम सिर्फ नाचो
और मैं तुम्हारी
गदराई काया को
देखता रहूँ,
हॉं, देखता रहूँ,
तुम्हारी स्तनों की उभारों को
कमर की चिकनाहटों को
देखता रहूँ,
हॉं, देखता रहूँ,
तुम्हारी नशीली नयनों में
और अपने को डूबोता रहॅ
टूटी-लटकी काया का
मदिरा पान करता रहॅू
तुम्हारी तन-मन को
निचोड़ता रहूँ
तब तक,
तुम सिर्फ और सिर्फ नाचो...!