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सहानुभूति / नीता पोरवाल

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सहानुभूति
गुलाबी पंखों वाले
फ्रिल लगे बड़े से सफ़ेद हैट के नीचे
अपने नुकीले दाँत
और घाघ नज़रों को छिपाए
किसी बहुरूपिये सी
भूख से बिलबिलाती
सिर्फ़ दिमाग के तंतुओं की शौक़ीन
छटपटाती ढूँढती फिरती है हर घड़ी
इंसानों के दिमाग
और
किसी शिकार के मिलते ही
हलक में भींच कर रखती है
देर तलक
फ़िर
मरा जान गटक जाती है
किसी घड़ियाल सी
एक झटके में समूचा दिमाग
और ताज्जुब यह कि
बगैर दिमाग के
जीवित रहने का भरम रख
बरसों बरस
मुस्कुराता रहता है इंसान