Last modified on 22 सितम्बर 2016, at 03:04

कह दो अंधेरों से / नीता पोरवाल

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:04, 22 सितम्बर 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नीता पोरवाल |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

शेष रहे
थोड़ी सी कहीं चिंगारी
गोकि
शाख से जुड़े रहने की
रस्म निभाने की आदत नहीं
कुछ पत्तों की

धुंधलके भरी ऎसी ही इक भोर में
ढूंढते रौशनी की किरन
यकीन है मुझे कि
इकट्ठे होंगे जरूर
इसी आस में अकुलाते
शाख से कुछ टूटे पत्ते

बना कर स्वयम को समिधा
प्रजवल्लित करेंगे
विशाल तेजपुंज
और दमक उठेंगे
म्लान सभी कृश काय मुख

कह दो अंधेरो से कि
अब उजाले बहुत दूर नहीं