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अनुभव / हरूमल सदारंगाणी ‘ख़ादिम’

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जिअं
साल ब साल
उमिरि
वधंदी थी वञे
मूंखे थो लॻे
चढ़ां पियो
कोई जबल।
हिक डं/द पुठियां डं/दु ॿियो
थींदो थधो
ही जिस्म वञे थो थकिबो
दम भरिबो।...
लेकिन
ग़म नाहि
केॾो थो वञे
वसीअ
थींदो मंज़र!