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कोशी के तीरेॅ-तीरेॅ / भाग 5 / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय

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हमरोॅ गाँववासी
सुन-सुन केॅ काँपै छै
जबेॅ कोय कहै छै
कि हे कोशी माय
तू जगह-जगह
भगवती रूप में ठाड़ी
आबेॅ माँगे छौ-बलि
पहलोॅ बेर माँगलौ
-पाठा आरो बकरा
फेर माँगलौ कद्दू आरो कोढ़ा
आबेॅ मांगै छौ
आदमी केरोॅ बलि
यही सें तेॅ
हे कोशी माय
तोरोॅ खलखल धार
जबेॅ-जबेॅ उमड़ै छौं
बैखलैलोॅ
नै जानौं कत्तेॅ
आपनोॅ सन्तान केॅ
निगली जाय छौ
हे भगवती कोशी
तोहें कालिका माय बनी।

हमरी नानी तेॅ
यही बतैलेॅ रहै हमरा
कि पार्वती के कोश सें
जबेॅ ओकरे रक्त
कोशी बनी केॅ
बही गेलोॅ रहै
तबेॅ पार्वती
होय गेली रहै काली
आरो कालिये बनी
कहीं हिमालय में
विश्राम करै लेॅ

चैइल गेली रहै।
हे कोशी माय
तोहें कबेॅ
हिमालय केॅ आश्रय छोड़ी
आवी गेलौ-आपनोॅ नैहर
कभी बागमती केॅ भी छूतें
मिली गेलोॅ
अंगदेश सें गल्ला-गल्ला।

तहिये सें
ई अंगुत्तराप
जहाँ कभियो वेद-काल में
बाँचै रहै मंत्र
बैठी केॅ वशिष्ठ
बैठी केॅ विश्वामित्र
बेठी केॅ ऋषि शुंग
जहाँ विश्राम मिलै
विष्णु केॅ
मंदार के क्षीर सागर छोड़ी
आवै छेलै यहाँ
जहाँ रमै छेलै
महादेव के मोॅन
ठामे-ठाम आराम करै
शयन करै शिव
हे माय कुमारिके
कभी-कभी सोचै छियै
कि कैहनें तोहें
रही-रही केॅ
एतना कठोर एक बारगिये बनी जाय छोॅ
कौन इच्छा
तोरोॅ पूरा नै भेल्हौं

कौनी कारनें तोरोॅ मोॅन
हहरै छौं
उफनै छौं
खोलै छौं
रही-रही केॅ एक्के समय में
वही मासॉे में
हे कुमारिके कोशी माय
अजगुत ई गाथा
तोहें तेॅ आभियो तक
कुमारिके छोॅ
आरो तोरोॅ बेटा
अनगिन असंख्य
एक सें एक बली
एक सें एक दानी
एक सें एक भक्त।
तोरे बेटा रहौं
लोरिक
जेकरोॅ कहानी कहतें-कहतें
आभियो नानी-दादी
अनचोके जुआन होय जाय छै
वहेॅ खून उमगै छै
वहेॅ बोली ठनकोॅ
आरो वहेॅ आँखोॅ में चमक
दादा आरो नाना के
आँखी में आभियो भी
पहाड़ के पौरुष
जागी उठै छै अनचोके
मतरकि
कहाँ छै ऊ लोरिक
अंगुत्तराप के ऊ अखाड़ा आय
मशान नाँखी छै

हरदिया कानै छै
कानै छै
कोशी के छाती पर
उदास पड़लोॅ पचरासी के डीह
जहाँ चरै रहै
बाबा विसू के
लाखो-लाख नब्बे लाख गाय
आबेॅ विसू बाबा नै छै
नै छै ऊ बाघिनियो
जेकरा औरत-जात जानी केॅ
छोड़ी देनें रहै बाबा नें
आरो लै लेलेॅ छेलै जान
बाबा के बाघिनिया नें
बही गेलोॅ रहै
बाबा के देह
दूध के समुन्दर में
दही गेलोॅ छेलै बाबा केरोॅ माटी
हे कोशी माय
तोरे खलखल धारा में
नै दिखावै छै कोय्यो
बाघिनियो नै
मतरकि गुर्राहट
हिन्नें-हुन्नें गूंजै छै आभियो
केकरा खैतै आरो
खइये तेॅ रहलोॅ छै
औरत-मरद, बाल-बुतरू
जेकरा पावै छै ओकरै
आरो बाबा विसू के ऊ ढाकर
वहू तेॅ नै दिखावै छै
हों, ढकरै के आवाज
गूंजी रहलोॅ छै चारो दिश