Last modified on 21 अक्टूबर 2016, at 04:03

धोबिया हो बैराग / कबीर

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:03, 21 अक्टूबर 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कबीर |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatAngikaRachna}} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

धोबिया हो बैराग।
मैली हो गुदरिया धोबिया धो दा हो॥टेक॥
कथि केरो किलवा, कथि केरो पाट।
कहाँ बसै धोबिया, कहाँ लागल घाट॥1॥
मन केरो किलवा, सुरत केरो पाट।
हे रे दइवा वही धोबिया, तिरबेनी लागल घाट॥2॥
लाया धोबिया गुदरी पुरान।
धोइते-धोइते धोबिया भइ गेलै हरान॥3॥
कहत कबीर गुदरिया केरो भाग।
मिली गेलै सतगुरु छूटी गेलै दाग॥4॥